Friday, March 25, 2016

भारत पर द्रविड़ आक्रमण (Dravidian Invasion on India)

जब में कक्षा 6 में था तब हमें पढ़ाया जाता था कि आर्य जाति कैस्पियन सागर से भारत आये थे 1500 ईसापूर्व के आस पास।
मैं कई वर्षो तक इसी बात को सत्य मानता रहा। इंटरनेट की दुनिया से में 9वि कक्षा में वाकिफ हुआ था। उस समय मैं कई फोरम और ग्रुप्स में गया जहा अधिकतर लोग इतिहासकार और पुरातत्वविद थे, कुछ देशी तो कुछ विदेशी। वे सब कम्युनिस्ट, नेहरूवादी, ईसाई, मुस्मिल और कई अन्य पंथो से थे इतिहास के। इनके अनुसार तो आर्य जाति क्रूर, हिंसक, अनपढ़, गड़रिये और दुनिया की सभी बुराई से भरे हुए थे। इनका केवल एक ही मकसद था, भारत के शांतिप्रिय, सभ्य आदि अदि द्रविड़ों का नाश। मैं सोचता यदि आर्य अनपढ़ थे तो वेदों की रचना कैसे कि उन्होंने, यदि वे हिंसक थे तो वेदों में अहिंसा की बात क्यों कि? यदि वे क्रूर थे तो वेदों में ईश्वर से दोस्तों और दुश्मनो सभी की रक्षा की बात क्यों की? यदि वे चरवाहे और कबीलाई किस्म के थे तो वेदों में उन्होंने दुर्ग में रहने, रथ चलाने और राष्ट्र का ज़िक्र क्यों किया?

सिकंदर जिसने लाखो नगर जलाए और अपने रिस्तेदारो तक को मरवा दिया गद्दी के लिए वो एक महान शासक हो गया पर आर्य लोग जिनके भारत में हमले का कोई सबूत उन्हें बेवजह बर्बर बना दिया।

लोग वेदों को न तो ठीक से समझ सके और न ही आर्यो को। लोग सरस्वती नदी ढूंढते है, और ढूंढते भी कहा है? अफगानिस्तान में जबकि सरस्वती को सिंधु और यमुना के बिच में बताया गया है। इससे बड़ी मूर्खता क्या है। एक अमेरिकी इतिहासकार और लेखिका जो संस्कृत में PhD कर चुकी है लिखती है की वेदों में पशु बलि और नरबलि का उल्लेख है पर आज तक किसी वैदिक नगर में बलि के सबूत नहीं मिले।

विज्ञान अनुसार तो मनुष्य अफ्रीका से निकले और फिर पुरे विश्व में फ़ैल गए। तो भारत के मूलनिवासी द्रविड़ कैसे? वे भी तो विदेशी है।

क्या द्रविड़ों ने भारत पर हमला नहीं किया था क्या, वे जब भारत आये थे तो उनका फूल मालाओ से स्वागत तो नहीं हुआ होगा, ऑस्ट्रो एशियाटिक लोग जो की उत्तर पूर्व से भारत आये थे, वे द्रविड़ों से पहले भारत में बसे। क्या इन दोनों लोगो का युद्ध नहीं हुआ होगा?

मेरे पास कुछ प्रमाण है जो सिद्ध कर सकते है कि द्रविड़ भी आर्यो की तरह विदेश से आये थे।

द्रविड़ी भाषा और एलामी भाषा में कुछ समानताए दिखी है कुछ इतिहासकारो को जैसे डेविड मैक-अल्पाइन।
एलामी सभ्यता एक अनार्य सभ्यता थी पश्चिमी ईरान की जो 2000 ईसापूर्व से लेकर फारस साम्राज्य के उदय तक थी।

द्रविड़ी भाषाए केवल दक्षिण भारत तक सिमित है, पाकिस्तान और उत्तर भारत में कुछ काबिले है जो द्रविड़ी भाषा बोलते है पर वे 1000 ईस्वी के बाद वहा बसे।

कुछ विध्वान मानते है की द्रविड़ी भाषा स्वतंत्र रूप से विकसित हुई पर कुछ लोग मानते है कि यह उत्तर अफ़्रीकी भाषाए द्रविड़ी भाषा के जनक थे।

यह मुमकिन है की भू-मध्य सागर के पास रहने वाले लोग तुर्की से होते हुए, इराक, ईरान और फिर भारत आ गए। प्राचीन समय में दक्षिण भारत में पल्लव वंश के राजाओ ने राज किया। यह पल्लव लोग ईरान से भारत आये थे, यह Parthian लोगो के वंशज थे और यह Indo-Parthian कहलाये। ईरान के होने के बावजूद यह दक्षिण भारतीयो से घुलमिल गए और इन्होंने तमिल भाषा और नाम अपना लिए।

यह ईरानी और द्रविड़ी लोगो के बिच के प्राचीन संबंध को बताता है। क्योंकि ईरान पर कई गैर एलामी सभ्यताओ ने राज किया इस कारन प्राचीन भाषाए जो द्रविड़ी और एलामी से संबंध रखती थी नष्ट हो गयी।

DNA के आधार पर भी यह साबित किया जा सकता है की द्रविड़ी विदेशी मूल के है और वे भी यूरोप से ताल्लुक रखते है।

मैं mtDNA और YDNA के जरिये द्रविड़ियो और गैर भारतीयो में संबंध दिखाऊंगा।

mtDNA एक माँ से उसकी संतानो में जाता है पर खासकर उसकी पुत्री में। हैम इसके जरिये किसी की वंशावली निकाल सकते है माँ की तरफ से।

Haplogroup U भारतीयो और यूरोपीय लोगो में पाया गया है पर भारत में इसकी मात्रा अधिक है।  Ua1 subclade यूरोप और तुर्की में अधिक पाया जाता है, subclade Haplogroup की शाखा को कहते है। भारत में Ua1 केवल केरल में पाया जाता है।

U2e Haplogroup यूरोपीय लोगो मई काफी पाया जाता है पर यह भारत में केवल दक्षिण भारतीयो में ही मिलता है।

Haplogroup R सबसे प्राचीन है और यह भारत में आई पहली महिला से फैला। Haplogroup R यूरोप और भारत दोनों में पाया जाता है पर पश्चिम भारत में सभी जातियो में सबसे अधिक जो यह दर्शाता है की पश्चिम भारतीय भारत के सबसे प्राचीनतम लोग है।

M30 Haplogroup ईरान और भारत में लगभग सभी लोगो में पाया जाता है। इसी कारन कुछ विध्वान मानते है की द्रविड़ी शायद ईरानी हो।

अब बात करते है YDNA की जो एक पुत्र को अपने पिता से मिलता है और इससे किसी की वंशावली पता कर सकते है उसके पिता की तरफ से।

Haplogroup F दुनिया के 90% व्यक्तियो में पाया जाता है और इसकी उत्पत्ति भारत में हुई थी। भारत और मध्य एशिया में इसकी अधिकता है।

Haplogroup R1a1 यूरोप, ईरान और भारत में अधिक पाया जाता है। यह आंध्र प्रदेश के वाल्मीकि, कुछ आदिवासी और दक्षिण भारत की जातियो में पाया जाता है। भारत में अधिकतर यह कोकणी ब्राह्मण, बिहार के बनिए और यादवो में अधिक है। इसकी उत्पत्ति यूरोप की मानी गयी है और इसे आर्य लोगो से अधिक जोड़ा जाता है। गौर करने वाली  बात है कि पंजाब में इसकी मात्रा बंगाली ब्राह्मण और कोकणी ब्राह्मणों से कम है जब की आर्य लोग पंजाब में आकर बसे थे और बाद में संपूर्ण भारत में फैले ऐसा माना जाता है।

Haplogroup H अधिकतर दक्षिण भारत में पाया जाता है पर यह पश्चिमी यूरोप और ईरान में भी मिलता है।

यह स्पेन के 7000 वर्ष पुराणी संस्कृति  Linear Pottery Culture के लोगो में भी पाया गया है जिसकी वजह से कुछ विद्वानों को लगता है कि यूरोप के प्राचीनतम लोग भारत से आये थे।

Haplogroup J2  की उत्पत्ति इराक में मानी गई है और यह पश्चिम एशिया के लोगो में अधिक पाया जाता है। भारत में यह सबसे अधिक दक्षिण भारतीयों में पाया जाता है और सभी जातियों में भी। यह भारतीय शिया मुसलमानो, पाकिस्तान के ब्राहुई और बलोच लोगो में और बंगाल के ऑस्त्रो एशियाटिक वनवासियों में भी पाया जाता है। यह उत्तर प्रदेश के SC कोल जाती में भी पाया जाता है।

Haplogroup L-M20 सर्वाधिक दक्षिण भारत में पाया जाता है खासकर कर्णाटक और तमिल नाडु में और सभी जातियों में। गुजरात में भी यह काफी मात्रा में पाया जाता है।

भारत के बाहर यह सबसे अधिक सीरिया, तुर्की, ईरान और अन्य देशों में पाया जाता है।

Haplogroup R2a यह भारत के काफी आम है और सभी जातियों और वनवासियों में पाया जाता है। यह उत्तर और दक्षिण के दलितों में भी काफी पाया जाता है और ब्राह्मणों में भी।

यह मध्य एशिया में भी काफी पाया जाता है और ईरान, इराक और अरब में भी। उसकी उत्पत्ति मध्य एशिया मानी गयी है।

इसके साथ ही भारत में कृषि की उत्पत्ति का श्रेय इराक के प्रवशियो को दिया जाता है। सिंधु सरस्वती सभ्यता के लोग कृषि जानते थे और शायद वे इराक के ही हो और क्योंकि उन्हें द्रविड़ मानते है तो द्रविड़ लोग इराकी हुए। बैल गाड़ी की उत्पत्ति भी इराक में हुई और यह सिंधु सरस्वती घाटी में काफी लोक प्रिय वाहन था साथ ही द्राविड़ी लोगो के जलीकट्टू से प्रेम दर्शाता है कि बैल उनके लिए काफी महत्वपूर्ण है और यह भी उन्हें अपने इराकी पुरखो से मिला हो।

भारत के सबसे प्राचीन लोग अंडमान के वनवासी है और आज के द्रविड़ इराक़, ईरान और अन्य देशों आये लोग और अंडमान के लोगो के वंशज है।

अभी DNA test  के अनुसार द्राविड़ी लोग भारत के बाहर किसी भी अन्य लोगो से सम्बंधित नहीं है जो की नामुमकिन है। आखिर वे भी तो अफ्रीका से ही आये है न की वे मानवो की कोई नई नस्ल है? अपने मालिको को खुश करने हेतु काफी तोड़ मरोड़ के टेस्ट के नतीजे पेश करते है यह लोग। अंडमानी लोग बाहरी लोगो से सम्बंधित नहीं होंगे क्योंकि वे 50 हज़ार वर्षो से दुनिया से अलग तलाक रह रहे थे पर द्राविड़ी लोग नहीं क्योंकि उनके सम्बन्धी आज इराक और ईरान में रह रहे है। अभी एक नई शोद्ध से पता चला है कि आयरिश संगीत और वाद्य यंत्र द्राविड़ी संगीत और वाद्य यंत्रों जैसे ही है। कितना झूठ बोलेंगे यह लोग और कबतक? सच सामने आ ही जाता है।

जय माँ भारती।

No comments:

Post a Comment