Sunday, May 18, 2014

हास्य कथा महिषासुर के शहादत की ( Comedy of Martyrdom of Mahishasur )

आंबेडकरवादियो के पास अधिक वास्तु नहीं है जिसके जरिये वे हिन्दुओ को घेर सके ,इसीलिए नए नए योजनाए बनाते रहते है ,अब इन लोगो ने जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी में "महिषासुर शहादत दिवस " मनाना शुरू कर दिया है |
यह लोग खुदको नागवंशी मानते है तो इन्हें बाइबिल और कुरान में वर्णित उस सर्प की याद में उत्सव मनाना चाहिए जिसने हव्वा को ज्ञान का फल खाने को कहा था और जिस कारण मनुष्य को ज्ञान मिला | पर यह लोग यह नहीं करेंगे ,क्युकी इनका इरादा न तो जातिवाद ख़त्म करना है और न दूसरा कुछ ,बस इन्हें अपने मालिक यानि इसाई और मुसलमानों के लिए भारत में हिंदुत्व को ख़त्म करना है |

समाचार पत्र 
जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी पहले से ही नेहरुवादियो का गढ़ रहा है और नेहरुवादी पहले से ही हिन्दू विरोधी रहे है | 2011 में इसकी शुरुआत हुई और अब धीरे धीरे कई हिंदू विरोधी लेखक और कार्यकरता भी इससे जुड़ रहे है | गंगा प्रदूषित हो रही है तो उसकी सफाई करना , भ्रष्टाचार बड रहा है तो उसे कम करना ,पर्यावरण की रक्षा करना जैसे कई नेक काम छोड़कर ये लोग केवल हिन्दुओ को ही घेरने जाते है |

चलिए अब मुद्दे पर आते है ,इन लोगो के अनुसार महिषासुर बंगाल का राजा था और असुर काबिले का था ,उसे हराने के लिए ब्राह्मणों ने आर्य स्त्री दुर्गा को भेजा जिसने छल कपट से महिषासुर को मार डाला और ब्राह्मणों ने बंगाल पर कब्ज़ा कर लिया |


  • पहली बात ,महिषासुर का राज्य दक्षिण में था न की बंगाल में |
  •  दूसरी बात , असुर जनजाति के लोग केवल उत्तर पूर्व और पूर्वी भारत में रहते है , वे दक्षिण में नहीं रहते |
  • तीसरी और आखिरी बात की आंबेडकरवादी चिल्ला चिल्ला कर कहते है की यूरेशिया से आर्य आये थे उनमे केवल पुरुष ही थे स्त्री नहीं , उन आर्यों ने भारत की मूलनिवासी स्त्रियों से विवाह किया था ,तो यह आर्य स्त्री कहा से आई ??

अब जैसे मैं पहले भी बता चूका ही आंबेडकरवादियो को Etymology यानि भाषा विज्ञान का कोई ज्ञान नहीं फिर भी वे भाषा वैज्ञानिक बनने क कोशिस करते है और किसी भी शब्द का उत् पटांग अर्थ निकलते है ,अप निचे दी कई फोटो देखिये |

फेसबुक के एक पोस्ट की फोटो 
असुर शब्द से अहुर शब्द की उत्पत्ति हुई यह सही है पर उसी से अहीर शब्द की उत्पत्ति हुई यह गलत है |  और महिषासुर का अर्थ भैस पालक तो बिलकुल नहीं होता  | कौनसे Etymologist या भाषा वैज्ञानिक ने इन्हें यह बताया की अहुर से अहीर शब्द बना ?? यह तो इन्ही की कल्पना है | सबसे ज्यादा हास्यापद बात यह है की इन लोगो ने लिखा है की सुर कोई काम नहीं करते थे , जब वे कुछ करते ही नहीं थे तो द्रविड़ो को उन्होंने हराया कैसे ?

यह तो असुर जनजाति के लोग है जो खुदको महिषासुर का वंशज मानती  है ,तो फिर इन आंबेडकरवादियो ने महिषासुर को अपना पूर्वज कैसे बना लिया ? ये तो कहते है की इनके पूर्वज द्रविड़ या नागवंशी है पर आदिवासी द्रविड़ नहीं होते |  कई आदिवासी जो भाषा बोलते है वे अधिकतर ऑस्ट्रो एशियाटिक भाषा परिवार की होती और द्रविड़ी भाषा परिवार इससे अलग है साथ ही जैसा आप निचे की फोटो में देख सकते है की ऑस्ट्रो एशियाटिक भाषाए भारत ,बर्मा ,थाईलैंड आदि देशो में बोले जाने वाली भाषा है |
कई जनजाति जैसे मुंडा ,संथाल ,असुर , बोंदा आदि ऑस्ट्रो एशियाटिक भाषाए बोलते है | तो यह सिद्ध होता है की आदिवासियों और आंबेडकरवादियो का एक दुसरे से कोई संबंध नहीं ,वे बेवजह ही महिषासुर को खुदका पूर्वज बना रहे है |
ऑस्ट्रो एशियाटिक भाषा परिवार 

अहीर और असुर शब्द का आपस में कोई लेना देना नहीं है , भाषा विज्ञान अनुसार शब्दों में विकृतियों के कारण उसमे परिवर्तन होता है पर उसका अर्थ वाही रहता है | अब कुछ जरुरी बातों पर ध्यान देते है |
  • असुर एक आर्य शब्द है |
  • भारत में असुर , ईरान में अहुर और अस्स्यरिया के अशुर का एक ही अर्थ है यानि परमबलवान या शक्तिशाली | ( निचे फोटो देखिये ,ऋग्वेद का मंत्र है और संस्कृत में उसका अर्थ परमबलवान है ,सरस्वती दयानंद के और ग्रिफ्फित  के अनुवाद अनुसार )
  • ऋग्वेद में असुर शब्द देवताओ के साथ उपयोग किया गया है और निचे दिए गए मंत्र में  " देवांसुरा " शब्द का उपयोग हुआ है |


ऋग्वेद मंडल 8 सूक्त 25 मंत्र 4 (स्वामी सरस्वती दयानंद के अनुवाद से 


  • ईरान में अहुर इश्वर का नाम था |
साफ़ है हिंदू ग्रंथो के असुर और असुर जनजाति दोनों ही अलग अलग है | हिंदू ग्रंथो के असुर असल में बुराई का प्रतिक थे और कुछ इतिहासकारों के अनुसार असुर और कोई नहीं बल्कि अहुर के पूजक ईरानी थे | ऋगवैदिक दास भी असल में ईरानी दाह ( Dahae ) किले के थे |
इसके अलावा भी कुछ बातें है जिनपर गौर करना चाहिए जैसे की
  • असुर आदिवासियों की लोक कथाओ में न ही महिषासुर का वर्णन है और न ही ही अन्य असुरो का जिनका वर्णन हिन्दू ग्रंथो में है |
  • न ही उनकी लोक कथा या गीतों में किसी अन्य सभ्यता या आक्रमण का वर्णन है |
  • आज़ादी से पहले असुर जनजाति के नवरात्री पर शोक मानाने या महिषासुर को श्रंधांजलि दमे का कोई रिकॉर्ड नहीं |
  • नवरात्री पर महिषासुर के लिए शोक जाताना आज़ादी के कई वर्षो बाद सुरु हुआ |
  • दुसरे आदिवासी काबिले मुंडा या संथाल असुर काबिले और उनके बिच में हुए युद्ध या त्स्क्रव का वर्णन करते है पर एक भी असुर राजा का वर्णन नहीं जिसका उल्लेख हिन्दू ग्रंथो में हुआ है |

सच तो यह है की असुर और अन्य कई आदिवासी अन्य भारतीय सभ्यताओ से अनजान थे | हमें न तो इनका वर्णन बोद्ध ग्रंथो में मिलता है , न यूनानी , न मुस्लिम लेखो में | न वे हमें जानते थे और न हम उन्हें |

नागा आदिवासी 

अब जरुरी नहीं की असुर आदिवासी हिन्दू ग्रंथो के असुर हो , नागालैंड को ही ले लीजिये , माना जाता है की अर्जुन की पत्नी उलूपी भारत के उत्तर पूर्व के नाग राज्य की थी | तो इतिहासकारों ने नागा आदिवासियों को ही उलूपी का वंशज मान लिया ,पर सच तो यह है की नागालैंड के नागा आदिवासी नाग की पूजा ही नहीं करते और न ही वे खुदको नाग बुलाते है | जब अंग्रेज नागा आदिवासियों से मिले तो उन्होंने उनका इतिहास खोजना शुरू किया , तब अहोम साम्राज्य के दस्तावेजो में नागा लोगो का उल्लेख मिला | थोडा ही उल्लेख था उनका और उन्हें कई नामो से पुकारा गया था , उनमे से एक नाम था नागा तो अंग्रेजो ने नागालैंड के आदिवासियों को नागा कहना शुरू कर दिया |
मुंडाओ की लोक कथा  'सोसोबोंगा'  मैं उनके और असुर काबिले के बिच हुए युद्ध का वर्णन है और यह भी वर्णन है की वे कही और से आकर असुरो के साथ आकर बसे | इसी कदर संथाल काबिले के लोक गीतों में वर्णन है क वे चम्पागढ़ के थे पर उन्हें वह जगह छोड़कर कही और बसना पड़ा | देखने वाली बात यह है की किसी भी आदिवासी लोक कथा में कही भी आर्य आक्रमण का उल्लेख नहीं , जब आदिवासी इतनी प्राचीन बातें याद रख सकते है तो वे आर्यों को कैसे भूल गए ??
इसका आंबेडकरवादियो का उत्तर होता है की ब्राह्मणों ने उन्हें भुलवा दिया , हा भाई ब्राह्मणों को और कुछ काम धंदा ही नहीं है लोगो को उनका इतिहास भुलाते रहे ??
दुनिया में कही भी ऐसा नहीं हुआ की किसी एक संस्कृति के व्यक्ति ने किसी अन्य संस्कृति के व्यक्ति को अपनी संस्कृति भुलाने की कोशिस की हो ??

इससे यह सिद्ध होता है की असुर काबिले के लोग पुराण  में वर्णित असुर नहीं और नही उनका और आर्यों का युद्ध हुआ | यह केवल एक प्रयत्न है हिन्दुओ के त्योहारों के सहारे उन्हें निचा दिखाने और इसाई मिशनरी का भारत पर कब्ज़ा करने का |

जय माँ भारती