Tuesday, January 28, 2014

रावन और बोद्ध धर्म (Ravana and Buddhism)

आंबेडकरवादी दावा :-
रावन एक दलित/नागवंशी राजा था जो बोद्ध था और जो लंका या गोंड पर राज करता था।
हिंदू बोद्ध विरोधी थे इसीलिए रावन को रामायण में खलनायक बना दिया ।

दावे का भंडाफोड़ :-
मैं जो साबुत देता हु वो ज्यादातर मुख्य धारा इतिहास के अनुसार होता है, तो कुछ लोग जो कहेंगे की में RSS का इतिहास बता रहा हु वे चुप रहे ।
आंबेडकरवादियो का यह सिधांत विरोधाभास से भरा हुआ है ।
इस सिधांत के 3 वर्शन है
1) रावण गोंड राजा था और बोद्ध था ,पुष्यमित्र हिंदू विरोधी था और उसने बोद्ध धर्मियो का नाश किया ।
2) रावण एक बोद्ध राजा था लंका का और बाकि सब पहले वाले की थी तरह ।
3) बृहद्र मौर्य रावण था और पुष्यमित्र राम था और बाकि सब वाही जो पहले वाले में  लिखा है ।
राम को दलित विरोधी या नागवंशी विरोधी सिद्ध करने में कई अड़चन थी तो यह अलग अलग सिधांत पैदा हो गए ।
ये बिचारे तो यह भी फैसला नहीं कर पाए की रावन आखिर कौन था ? गोंड राजा,लंका का राजा या बृहद्र मौर्य ,इसी से पता चलता है की इस सिधांत में कोई दम नहीं और इसे लोग कैसे मान लेते है पता नहीं ।
पहले गोंड राजा वाले सिधांत पर बात करते है,मध्य प्रदेश में एक गोंड समुदाय रावण की पूजा करता है इसी से इन लोगो ने यह निष्कर्ष निकाला की रावण एक गोंड राजा था ,पर मध्य प्रदेश में ही एक ब्राह्मण समुदाय भी रावण की पूजा करता है ,तो इसपर क्या कहेंगे आंबेडकरवादी ??
इसके अलावा हिंदू ,जैन और बोद्ध ग्रंथो में रावण को हमेशा से लंका का ही राजा कहा गया है तो वो गोंड का राजा कैसे ??
और किस ग्रंथ में लिखा है की पुष्यमित्र के काल में रावण नाम का कोई राजा था ??

अब दुसरे वाले वर्शन पर आते है ।बोद्ध ग्रंथ लंकावतार सुत्त के अनुसार रावण बोद्ध राजा था और महात्मा बुद्ध उसके राज्य काल में श्री लंका आये थे और बुद्ध से दीक्षा ले रावण बोद्ध बन गया ।
श्री लंका के बोद्ध और भारत के कई बोद्ध यही मानते है की रावण बोद्ध था और तमिल या दलितों का हीरो था जबकि रावण ने एक भी ऐसा काम नहीं किया जो उसे तमिलो का या दलितों का मसीहा बना दे ।
अब लंका में बोद्ध धर्म आया अशोक के काल में उससे पहले वहा बोद्ध धर्म नहीं था बल्कि हिंदू धर्म था ।
लंका की लोक कथाओ के अनुसार लंका का पहला राजा था विजय ।विजय राजा सिंहभाहू का पुत्र और सिंहपुर राज्य का राजकुमार और उसकी माँ कलिंग की राजकुमारी थी,सिंहपुर की सही स्थिति नहीं पता ।कुछ के अनुसार सिंहपुर गुजरात में था और कुछ के अनुसार बंगाल में  ,विजय दुष्ट था इसीलिए एक दिन उसके पिता ने उसे अपने राज्य से निकाल दिया। राजकुमार विजय अपने 700 अनुयायियों के साथ समुद्र के रस्ते नई जगह की खोज में निकले,जब विजय को निकाला गया था तभी महात्मा बुद्ध की मृत्यु हुई थी यानि विजय 500 ईसापूर्व का था ।
विजय तब लंका पहोचे,क्युकी विजय के पिता सिंहभाहू के पिता एक शेर या सिंह थे इसीलिए वे खुदको सिहल पुकारते ।
विजय लंका में हिंदू धर्म लाया ऐसा भी हम कह सकते है और विजय हिंदू ही था ।
तब लंका में नाग ,राक्षस और यक्ष नाम के काबिले के लोग रहते थे ।
विजय ने राक्षसो की राजकुमारी से विवाह किया और फिर वह श्री लंका का पहला राजा बना ।
अब हिंदू धर्म पहले से लंका में था या विजय उसे लाया लेकिन इससे यह सिद्ध होता है की हिंदू धर्म लंका में बोद्ध धर्म से पहले से था ।
लंका के लोग भी हिंदू थे या बन गए और लंका के लोगो में रावण काफी प्रसिद्ध थे ।
जब बोद्ध धर्म लंका के लोग अपनाने लगे तो उन लोगो ने रावण को भी बोद्ध धर्म में ढाल दिया ।

अब तीसरे वर्शन पर आते है ।
तीसरे वर्शन की कहानी अशोकवादाना से है ।कहानी अनुसार पुष्यमित्र ने हजारो बोद्ध भिक्षुओ की हत्या कर दी थी ,यह कहानी काल्पनिक है और अशोकवादाना के बारे में पड़ने के लिए यहाँ क्लिक करे ।
इस वर्शन के अनुसार रामायण काल्पनिक कहानी है और बृहद्र मौर्य ही असल में रावण था ।
बृहद्र मौर्य एक छोटा राजा था और पुष्यमित्र का असली खतरा बृहद्र मौर्य नहीं था बल्कि यूनानी राजा मिलिंद था ।
पर मिलिंद एक आक्रमणकारी था और बोद्ध था तो असली खलनायक मिलिंद ही नज़र आ रहा था और उसके किलाफ़ युद्ध लड़ने वाला पुष्यमित्र नायक नज़र आ रहा था ,तो मिलिंद के बजाये अम्बेडकरवादीयो ने बृहद्र को ले लिया ।

रावण हिंदू था और ब्राह्मण था ।
हिंदू,जैन और बोद्ध ग्रंथो में रावण के बारे में जितना लिखा है वो उसे दलित या तमिल लोगो का मसीहा कही भी सिद्ध नहीं करती ।
न रावण ने दलितों के लिए कोई जंग की और न तमिलो के लिए कुछ किया
क्युकी रामायण में रावण राम के किलाफ़ था इसीलिए उसे दलित और तमिल मसीहा बना दिया साथ में एक बोध भी जो वो कभी था भी नहीं ।

जय माँ भारती

Sunday, January 26, 2014

शिवाजी हिन्दू होते

ब्रिगेडी छत्रपति शिवाजी महाराजां कडून काय
शिकले :
1. ब्राम्हण द्वेष
2. हिंदू धर्म मानू नका
3. देवान वर टीका करणे
खरच महाराजांनी हे शिकवले
का महाराजांचा देवी देवतांवर विश्वास नवता तर मग
1 महाराजांनी प्रताप गाडा वर भवानी मंदिर
का बांधले .
2 गोव्याच्या सप्त कोटेश्वर चा जीर्णोद्धार
का केला .
3 निंबाळकर आणि नेताजी पालकर यांचे शुद्धीकरण
करून त्यांना पुन्हा हिंदू का केले . राजे देव धर्म मनात
होते . म्हणूनच हिंदूंचा त्यांनी उद्धार केला .
महाराजांचं नाव घेऊन संभाजी ब्रिगेड
महाराजांचा आणि मराठ्यांचा अपमान करत आहे .
एकी कडे राजे सेक्युलर होते हे बोलायचे
आणि दुसरीकडे ब्राम्हण आणि हिंदू देवान वर अश्लील
टीका करायची . जय हिंदू मराठा

Wednesday, January 22, 2014

द्रविड़ी भाषा (Dravidian Language)

आंबेडकरवादियों का दावा :-
द्रविड़ी भाषा परिवार की भाषाए भारत की मूल भाषा था आर्यों के आने से पहले ।द्रविड़ी भाषा की उत्पत्ति भारत में हुई थी ।

मिथक का भंडाफोड़

भारत में आज तिन भाषा परिवारों की भाषाए बोली जाती है ।एक तो हिंद आर्य जो सबसे ज्यादा लोग बोलते है।दूसरा सबसे बड़ा भाषा परिवार है द्रविड़ी भाषा परिवार जो दक्षिण भारत में अधिक बोला जाता है ,ब्राहुई भी द्रविड़ी परिवार से ताल्लुक रखता है और वही उन गिनी चुनी भाषा में से एक है जो भारतीय उप महाद्वीप के उत्तर में बोली जाती है ।तीसरा भाषा परिवार है सीनों तिबत्तन भाषा परिवार जो उत्तर पूर्व भारत में बोली जाती है ।
द्रविड़ी भाषा भारत की मूल भाषा थी आर्यों के आने से पहले यह मिथक अंग्रेजो ने गडा था ।
आज अस्को प्रपोला जैसे विद्वान भी इस बात का समर्थन करते है ,समर्थन क्या ,अस्को को इनाम के तौर पर काफी पैसे मिलते है दक्षिण भारत से जो खुदको द्रविड़ी समझते है ।

जब मानव अफ्रीका से निकला तब वो कई दलो में बट गया ,जो समूह जहा गया और बसा वहा एक नई भाषा का विकास हुआ ,यानि हर भाषा परिवार एक दुसरे से संबंध रखती है ।

द्रविड़ एक संस्कृत शब्द है जो दो शब्द द्रव और विद से बना है । द्रव का अर्थ है जल और विद का अर्थ विद्वान अर्थात ऐसे लोग जो समुद्र के ज्ञाता हो ,कुछ ग्रंथो में महाराष्ट्र,गुजरात,तमिल नाडू,उड़ीसा आदि तटीय इलाको को द्रविड़ी देशो में गिना गया है ,ये राज्य समुद्र के करीब है  ।

द्रविड़ी भाषा भारत की मूल भाषा नहीं पर उसका पूर्वज हो सकता है ,उसका पूर्वज और संस्कृत का पूर्वज एक ही है ।भारत में 70 हज़ार वर्ष पहले लोग नर्मदा नदी के किनारे बसे ,फिर बाद में इन्ही लोगो का समूह उत्तर भारत में बसा और एक दक्षिण में ।
अलग अलग होने से पहले ये लोग जो भाषा बोलते थे वह ही तमिल और संस्कृत की माँ थी ।
पर संस्कृत अपनी माँ के ज्यादा करीबी है और तमिल आदि द्रविड़ी भाषा विदेशी ज्यादा लगती है ।
डेविड मेक आलपिन ने अपनी शोध से पता लगाया की प्राचीन ईरान की एलाम सभ्यता की भाषा एलामी भाषा और द्रविड़ी भाषा के 20% शब्द मिलते है ।
एलामी भाषा किस भाषा परिवार से ताल्लुक रखता है इसपर अभी शोध चल रही है पर कुछ लोगो के अनुसार एलामी भाषा द्रविड़ी भाषा परिवार की सबसे प्राचीन भाषा है ।
डेविड अनुसार सिंधु सरस्वती सभ्यता की भाषा द्रविड़ी भाषा थी और जैसे जैसे इराक से खेती दूसरी जगह फैली तो खेती ईरान पहोची और वहा से सिंधु घाटी में ,खेती के साथ एलामी भाषा भी भारत पहोची ।
इसके अलावा कुछ विद्वानों ने द्रविड़ी भाषा और प्राचीन इराक की भाषा सुमेरी भाषा में समानता पाई है पर सुमेरी भाषा एफ्रो एशियाटिक भाषा परिवार से ताल्लुक रखती है ।
कुछ विद्वानों ने पश्चिमी यूरोपीय भाषा और द्रविड़ी भाषा में भी समानता देखि है ।
यदि ऐसा ही है तो द्रविड़ी भाषा भारतीय कम विदेशी ज्यादा है ।
पर अस्को प्रपोला जैसे विद्वान जो पैसे लेते है और कई अन्य लोगो ने इस बात को नकार दिया की द्रविड़ी भाषा इराकी,ईरानी और पश्चिमी यूरोपीय भाषा से मिलती है ।
आखिर नकारेंगे ही ,इनके आकाओ को यह मंजूर नहीं ।
आर्य द्रविड़ विवाद केवल भारत में ही नहीं हर उस देश में है जहा काले गोरे का रंगभेद है ।
अश्वेत लोग मानते है की वे द्रविड़ी है और श्वेत लोग खुदको आर्य मानते है ।
यूरोप,इराक और ईरान को हमेशा से आर्यो का यानि की श्वेत लोगो का गड़ माना जाता है ,अब यदि अश्वेतों की भाषा आर्यो की भाषा से मिलती हो यह बात साबित हो जाये तो रंग के नाम पर राजनीती करके पैसा कमाने वाले पैसे कैसे कमाएंगे ??
न कोई श्वेत जाती है और न ही अश्वेत ,यह केवल कल्पना है ।

मैं आपको बता चूका हु की द्रविड़ी भाषा भारतीय न होकर ज्यादातर विदेशी है ।
सिंधु सरस्वती सभ्यता के लोग संस्कृत बोलते थे ।