Friday, March 28, 2014

तिरुपति बालाजी एक हिंदू तीर्थ है भाग 1 (Tirupati Balaji is a Hindu ShrinePart 1 )

Tirupati Balaji was a Budhhist Shrine यह 30 अध्याय की यह पुस्तक श्री जमनादास जी ने लिखी है जो की एक आंबेडकरवादी है और इस पुस्तक के जरिये भारत के लगभग हर बड़े हिंदू तीर्थ को बोद्ध मंदिर बताने की कोशिश की है ।
मुझे जमनादास की इस पुस्तक को गलत सिद्ध करने के लिए 30 अध्याय की पुस्तक लिखने की जरुरत नहीं क्युकी तिरुपति का उल्लेख एक भी बोद्ध ग्रंथ में नहीं ,तो क्या स्वयं गौतम बुद्ध जमनादास जी को सपने में बताकर गए थे की तिरुपति एक बोद्ध मंदिर है ??
तिरुपति आदि हिंदू मंदिरों को बोद्ध मंदिर सिद्ध करने के लिए जो तर्क जमनादास जी ने दिए है वे बचकाने है ,जैसे की वनवासी या आदिवासी बोद्ध ,यदि वनवासी बोद्ध होते तो उनके कर्म काण्डो में आज भी बोद्ध धर्म के अंश होते जो की नहीं है ,साथ ही एक और तर्क यह भी है की इन मंदिरों में दलितों को आने की इज़ाज़त है जो इन मंदिरों के बोद्ध होने की पुष्टि करता है ,हा जैसे की बोद्ध अपने मंदिरों में दलितों को जाने देते थे ,लालिताविस्तारासुत्त में गौतम बुद्ध कहते है की बोधिसत्व केवल ब्राह्मण और क्षत्रिय कुल जैसे पवित्र कुल में ही जन्म ले सकता है ।बोद्ध धर्म दलितों के लिए कितना भला सोचता है यह बताने की अब जरुरत नहीं ।
हमें दंतिवार्मन पल्लव के लेख मिलते है जो की 900 इसवी के कुछ ही पहले के है और उसमे तिरुपति का विष्णु मंदिर होने का उल्लेख है जबकि अभीतक एक भी ऐसा लेख नहीं मिला दंतिवार्मन पल्लव के पहले का जिसमे तिरुपतिया तिरुमल्लाई पर्वत पर किसी बोद्ध मंदिर का उल्लेख हो ।
चुकी तिरुपति दंतिवार्मन पल्लव के काल में बना था इसीलिए यह सिद्ध होता है की वह कोई बोध मंदिर नहीं था जिसको बाद में हिंदू बना दिया गया ।
बालाजी की मूर्ति में जनेउ भी है और उनकी छाती पर लक्ष्मी जी है ,इसपर जमनादास कहते है की वे लक्ष्मी नहीं बल्कि एक बोद्ध देवी है जिसे ब्राह्मणों ने लक्ष्मी बना दिया जो की गलत है साथ ही जमनादास कहते है की बालाजी की या विष्णु जी की मूर्ति में कोई हथियार नहीं अर्थात वह हिंदू मूर्ति नहीं ,पहले तो यह बताओ की कहा लिखा है की हिंदू मूर्तियों में देवताओ के हाथ में हथियार होना ही चाहिए ?? श्री कृष्ण जी की कई मूर्तियों में हथियार नहीं बल्कि बांसुरी है ,तो क्या श्री कृष्ण जी भी गौतम बुद्ध थे ??
सिलाप्पतिकाराम यह एक बोद्ध ग्रंथ है और इसमें उल्लेख है की एक ब्राह्मण तिरुमल्लाई पर्वत जाता है जहा तिरुपति स्थित है ,वहा वह एक विष्णु मंदिर में भजन गाता है और वह मंदिर और कोई नहीं बल्कि तिरुपति बालाजी ही है ।
खुद बोद्ध ग्रंथ कहते है की तिरुपति कोई बोध मंदिर नहीं अपितु एक हिंदू मंदिर है ।
तिरुपति के साथ साथ जगन्नाथ पूरी को भी बोद्ध तीर्थ कहा गया है इस पुस्तक में ।
जमनादास जी ने जगन्नाथ पूरी को एक बोद्ध तीर्थ सिद्ध करने के लिए जो प्रमाण दिए है वे प्राचीन काल में उड़ीसा के एक बोद्ध राज्य होने के है पर वे यह सिद्ध नहीं कर सके की श्री जगन्नाथ जी का मंदिर है या जगन्नाथ पूरी पहले एक बोद्ध तीर्थ था ।
यह पुस्तक एक बकवास है यह इस बात से सिद्ध होता है की जमनादास जी ने लिखा है की "फा क्सियन (Fa xian) जब भारत आया था तब उसने रथ यात्रा देखि थी और उसमे बुद्ध की मूर्ति थी ,यानि प्राचीन काल में जगन्नाथ पूरी में बुद्ध की रथ यात्रा निकाली जाती थी ।"
जब मैंने यह पड़ा तो मैं भी चक्कर में पड़ गया की अब इसका क्या जवाब दू ,तब मैंने इन्टरनेट में कई वेबसाइट देखि और उनमे भी यही लिखा था ,शायद जमनादास जी ने इन्ही वेबसाइट की सहयता से इस पुस्तक को लिखा है ।
आखिर मैंने फैसला किया की मैं स्वयं फा क्सियन का लिखा पडूंगा ।
A Record of Buddhistic Kingdoms by James Legge पेज नंबर 79 पड़े ।
यह फा क्सियन की पुस्तक है जिसका अंग्रेजी में अनुवाद जेम्स लग्गे ने किया है और गूगल बुक में आपको आसानी मिल जाएगी ।
फा क्सियन कलिंग या उड़ीसा के रथ यात्रा का जीकर नहीं करते है बल्कि पाटलिपुत्र के रथ यात्रा का करते है ,साथ ही वे यह भी लिखते है की रथ पर बुद्ध की मूर्ति है साथ बोधिसत्व की मूर्ति भी है ,पर वे इस यात्रा में कही भी बोद्ध भिक्षुओ का उल्लेख नहीं करते बल्कि यह लिखते है की पाटलिपुत्र के दरवाजे पर ब्राह्मण रथ का स्वागत करते है यानी की फा क्सियन ने किसी हिंदू देवता को गलती से गौतम बुद्ध समाज लिया होगा क्युकी बोद्ध उत्सव में रथो का स्वागत भला ब्राह्मण क्यों करेंगे ??
शायद फा क्सियन राम को गौतम बुद्ध और लक्ष्मन और सीता को बोधिसत्व समाज रहे हो या फिर जगन्नाथ की रथ यात्रा हो ।
जमनादास यह भी लिखते है की कलिंग में गौतम बुद्ध का दांत रखा हुआ था जिसकी लोग पूजा करते थे और उसकी ही रथ यात्रा निकाली जाती थी और फा क्सियन ने इसका भी उल्लेख किया है ।
बड़ी चतुराई से जमनादास जी ने फा क्सियन के उल्लेखो में हेर फेर कर दी ।सच तो यह है की फा क्सियन ने बुद्ध का दांत कलिंग में नहीं बल्कि श्री लंका में देखा था और वहा के लोग उस काल में उत्सव मनाते थे पर रथ यात्रा नहीं ।
इससे यह साबित होता है की जगन्नाथ कोई बोद्ध मंदिर नहीं ।
जमनादास यह भी कहते है की जगन्नाथ में जातिवाद नहीं है तो जगन्नाथ में जातिवाद न होने की उसका कारण है मध्यकालीन कई हिंदू संत जिन्होंने जातिवाद के विरुद्ध काम किया ।
जमनादास जी ने पंढरपुर के विट्ठल मंदिर को भी एक बोद्ध स्थल बता दिया । जमनादास जी पहले तो अपने बचपन का उधारण देते है की उनकी स्कूल की टेक्स्ट बुक में विट्ठल की तस्वीर को बुद्ध बताया गया था ,अब प्रिंटिंग में गलती हुई होगी । इससे बड़ा चुटकुला और हो की क्या सकता है ?? श्री विट्ठल जी की मूर्ति के दोनों हाथ अपनी कमर पर है ,भला गौतम बुद्ध की इस मुद्रा में कोई मूर्ति मिली है ??
जमनादास कहते है की विट्ठल की मूर्ति कत्यावालाम्बित मुद्रा में है और बुद्ध की कई मूर्तिय इसी मुद्रा में है ,पर विट्ठल जी की मूर्ति कत्यावालाम्बित मुद्रा में बुल्किल नहीं है ।
जमनादास जी विट्ठल को गौतम बुद्ध की मूर्ति सिद्ध करने के लिए संत एकनाथ के 2 दोहे देते है जिसमे विट्ठल जी को बुद्ध का अवतार कहा गया है ।पहले तो जमनादास जी यह बताये की बोद्ध धर्म में अवतारवाद कहा से आ गया ?? श्री विट्ठल विष्णु के अवतार कहे जाते है और गौतम बुद्ध भी ,इसीलिए संत एकनाथ
कहते है की विट्ठल बुद्ध यानि विष्णु के अवतार है ।
जमनादास कहते है की संत तुकाराम और संत नामदेव भी विट्ठल को 'मौनी बुद्ध' कहते है ।पर मौनी बुद्ध का अर्थ है शांत पुतला या मूर्ति यानि की संत तुकाराम और संत नामदेव कहना चाहते है की विट्ठल मूर्ति के रूप में है ।
जमनादास दुबारा हेर फेर करते है इस बार ,वे बार बार विट्ठल ,विठोबा और पांडुरंग को एक कन्नड़ शब्द बता रहे है जबकि वे मराठी है ,पुंडलिक को पुन्दारिक से जोड़ते हुए कहते है की सधर्म पुन्दारिक नाम का एक बोद्ध ग्रंथ भी है ।पर पुंडलिक विट्ठल जी का भक्त था साथ ही इस ग्रंथ का नाम पुन्दारिक होने से विट्ठल के बुद्ध होने का क्या लेना देना ,क्या किसी बोद्ध ग्रंथ में लिखा है की पंढरपुर में कोई बोद्ध मंदिर था ?? नहीं
जमनादास यह भी कहते है की विट्ठल आदिवासियों के प्राचीन देवता थे आर्यों के आने से पहले और फिर विट्ठल बुद्ध से जुड़ गया ,अब पहले यह तय करो की विट्ठल प्राचीन देवता है की गौतम बुद्ध ।
इसी के साथ यह भी साबित हो गया की पंढरपुर के विट्ठल बुद्ध नहीं ।

मैंने कुछ सहयता यहाँ से भी ली है ,इसमें इस पुस्तक  में के हर सवाल का जवाब है ।यहाँ क्लिक करे

जय माँ भारती

12 comments:

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    1. pls - प्रबोधनकार ठाकरे सम्पूर्ण वांग्मय पढ़े.pdf उपलब्ध है.

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    2. pls - प्रबोधनकार ठाकरे सम्पूर्ण वांग्मय पढ़े.pdf उपलब्ध है.

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  3. आप के पुष्टि के लिए एक लिंक दे रहा हु ' its bluedairy.blog spot.'
    इस ब्लॉग पर आपको कई प्रकार के प्राचीन मन्दिर जो पहले बौद्ध विहार थे के प्रमाण मिल सकते है .कई ऐसे अशोक के पिल्लर है जिस को तोड़कर उसे लिंग बना दिया गया
    है .बाल ठाकरे के पिताश्री श्री के सी. ठाकरे जिन्हें 'प्रबोधन कार ' ठाकरे कहते है उन्होंने अपने कई लेखो में बौद्ध विहार जो बाद में हिन्दू -वैदिक मन्दिर बन गए है का उल्लेख किया है.
    भारत में कई विदेशी चीनी पर्यटक आये थे जो सम्पूर्ण भारत दर्शन कर के पुन: वापस गए .इतसिंग ,फाह्यान ,ह्यून त्संग ,लामा तारा नाथ इत्यादि ने कही भी वैदिक मन्दिर की बात नही की है जितने भी मन्दिर आज मौजूद है सभी मुस्लिम आक्रमण के पश्चात बने है .
    कुछ ब्राम्हणोने तथा कुछ राजाओ ने उनसे रिश्तेदारी के बदले में ऐसे कई मन्दिरो का निर्माण करवाया .और विखण्डित हुई वैदिक परम्परा का विकास किया .

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    1. कई चीनी यात्रियों ने राक्षस आदि अलौकिक जीव देखने की बात भी कही है।

      चीनी यात्री बौद्ध थे तो वे बौद्ध विहारो की बात ही करेंगे।
      और यदि आप के हिसाब से चीनी यात्रियों ने कभी वैदिक मंदिर नही देखे तो वैदिक धर्म वाले लोग तो उस समय विलुप्त ही हो गये होंगे?
      अचानक से मुसलमान उन्हें अपने साथ तो लाए नही होंगे न?
      कटु सत्य यह है की आज जिस जगह पर तिरुपति मंदिर है उस जगह पर किसी बौद्ध मंदिर होने का जिक्र किसी बौद्ध ग्रंथ या चीनी यात्री ने नही किया।

      बस यह नाव बौद्ध और एंटी हिन्दू संघो के चोचले है।

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  4. आप के पुष्टि के लिए एक लिंक दे रहा हु ' its bluedairy.blog spot.'
    इस ब्लॉग पर आपको कई प्रकार के प्राचीन मन्दिर जो पहले बौद्ध विहार थे के प्रमाण मिल सकते है .कई ऐसे अशोक के पिल्लर है जिस को तोड़कर उसे लिंग बना दिया गया
    है .बाल ठाकरे के पिताश्री श्री के सी. ठाकरे जिन्हें 'प्रबोधन कार ' ठाकरे कहते है उन्होंने अपने कई लेखो में बौद्ध विहार जो बाद में हिन्दू -वैदिक मन्दिर बन गए है का उल्लेख किया है.
    भारत में कई विदेशी चीनी पर्यटक आये थे जो सम्पूर्ण भारत दर्शन कर के पुन: वापस गए .इतसिंग ,फाह्यान ,ह्यून त्संग ,लामा तारा नाथ इत्यादि ने कही भी वैदिक मन्दिर की बात नही की है जितने भी मन्दिर आज मौजूद है सभी मुस्लिम आक्रमण के पश्चात बने है .
    कुछ ब्राम्हणोने तथा कुछ राजाओ ने उनसे रिश्तेदारी के बदले में ऐसे कई मन्दिरो का निर्माण करवाया .और विखण्डित हुई वैदिक परम्परा का विकास किया .

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    1. १२ वे सदी के संत ज्ञानेश्वर, संत नामदेव, संत एकनाथ, संत जनाबाई, संत कान्होपात्रा से लेकर संत तुकाराम तक अनेक संतोंने उनके अभंगों में भगवान विठ्ठल को रूक्मीणीवल्लभ ( रूक्मीणी का पती ), यशोधानंदन ऐसे शब्द इस्तेमाल किये हुए है | ये सब सिध्द करते है की श्रीविठ्ठल श्रीकृष्ण (श्रीविष्णु) ही है, इसिलिए विठ्ठल को वैकुंठ के राजा कहा गया है |

      १५ वे सदी के संत कान्होपात्रा का अभंग भी यही सिध्द करता है

      अगा वैकुंठीच्या राया राया विठ्ठल सखया
      ( हे वैकुंठ के राजा, हे विठ्ठल )

      अगा नारायणा अगा वसुदेवनंदना
      ( हे नारायण, हे वसुदेवनंदन )

      अगा पुंडलिकवरदा, अगा विष्णु तू गोविंदा
      (हे पुंडलिक को वर देने वाले, हे विष्णु, हे गोविंद )

      रखुमाईच्या कांता, कान्होपात्रा राखी आता
      ( हे रखुमाई ( रूक्मीणी ) के कांत, कान्होपात्रा की रक्षा करो )

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  7. १२ वे सदी के संत ज्ञानेश्वर, संत नामदेव, संत एकनाथ, संत जनाबाई, संत कान्होपात्रा से लेकर संत तुकाराम तक अनेक संतोंने उनके अभंगों में भगवान विठ्ठल को रूक्मीणीवल्लभ ( रूक्मीणी का पती ), यशोधानंदन ऐसे शब्द इस्तेमाल किये हुए है | ये सब सिध्द करते है की श्रीविठ्ठल श्रीकृष्ण (श्रीविष्णु) ही है, इसिलिए विठ्ठल को वैकुंठ के राजा कहा गया है |

    १५ वे सदी के संत कान्होपात्रा का अभंग भी यही सिध्द करता है

    अगा वैकुंठीच्या राया राया विठ्ठल सखया
    ( हे वैकुंठ के राजा, हे विठ्ठल )

    अगा नारायणा अगा वसुदेवनंदना
    ( हे नारायण, हे वसुदेवनंदन )

    अगा पुंडलिकवरदा, अगा विष्णु तू गोविंदा
    (हे पुंडलिक को वर देने वाले, हे विष्णु, हे गोविंद )

    रखुमाईच्या कांता, कान्होपात्रा राखी आता
    ( हे रखुमाई ( रूक्मीणी ) के कांत, कान्होपात्रा की रक्षा करो )

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